भोजपुरी। आईं आज जानल जाव भोजपुरी समाज के बियाह के रस्म आ ओकर वैज्ञानिक महत्व के बारेमें । सब से पहिले बात करब हरदी के रशम क़े बारेमे इ उ रसम हवे जवना मे कनिया आ बर के सरसो के उबटन आ हरदी के पेस्ट बना के शरिर पर बियाह से पहिले लगावल जाला। हरदी के रशम बियाह के दिने सबेरे बर आ कनिया के घर मे चाहे बियाह होखे वाला स्थान पर आयोजित होला। बहुत जगह हरदी के रशम बियाह से एक दिन पहिले होला।
बियाह के ठीक पहिले कनिया आ बर के एहसे हरदी लगावल जाला ताकी कनिया आ बर के चेहरा पर कवनो दाग धब्बा ना रहे। संगही जोडा के कवनो चोट आ बिमारी से भी बचावे के काम करेला हरदी। हमनी किहां अलग अलग जगह मे बियाह के रशम आ रिवाज भी फरक होला। आ ईहे भिन्नता एकर सुंदरता हवे।
कतना जगह त बियाह के रशम रिवाज महिना-महिना तक चलेला हर रशम के आपन वैज्ञानिक आ धार्मिक महत्त्व भी बा। जैसे बियाह मे हरदी के रशम बर आ कनिया के सुंदरता के औरी निखार देवेला। सब से रोचक बात ई बा की एह रशम से खाली कनिए के ना वर क़े भी के गुजरे के परेला। बियाह से पहिले हरदी के रशम एहुसे होला जे कनिया आ वर के बाउर नजर से ई रशम बचावेला।
एह रशम के बाद बर आ कनिया के घर से बहरी निकले के मनाही रहेला। हमनी के समाज मे हरदी के शुभ मानल जाला एहिसे बियाह से पहिले बर आ कनिया के हरदी लगा के वैवाहिक जीवन के शुभकामना आ बधाई देहल जाला। अलग-अलग जगह पर हरदी लगावे के तरिको अलग-अलग होला। कुछ लोग अपना ईच्छा से हरदी मे चंदन,दूध आ गुलाब जल मिला के भी लगावेला लोग।
पिसल हरदी के गर्दम,हाथ,पैर आ चेहरा पर लगावल जाला। हरदी के रशम मे जोडा के परिवार के लोग भी सामिल होला आ सब लोग बारीबारी से हरदी लगावेला लोग आ औरत लोग गीत मंगल भी गावेला लोग। कहल जाला जे बर आ कनिया के हरदी कवनो कुंवार लईका लईकी के लाग जाए त ओकर बियाह जल्दी हो जाला।
अभी के समय अईसन पहिले एतना ब्युटी प्रोडक्ट ना रहे एहिसे सुंदरता के निखारे खातिर प्राकृतिक बस्तु के प्रयोग होत रहे। शोधकर्ता लोग के कहनाम बा की हरदी चेहरा के साफ,सुंदर आ चमकदार राखेला। काहे की हरदी मे एंटी आक्सीडेन्ट रहेला जवन चेहरा के स्वस्थ राखेला। हरदी एंटिसेप्टीक होला। एहिसे एकरा के जरल भा कटल पर लगावल जाला।
बियाह से पहिले बर कनिया के हरदी एहुसे लगावल जाला की शरिर भा चेहरा पर कवनो जरल भा कटल के दाग होखे त ना बुझाए। सुंदरता बढावे के साथ-साथ हरदी मे ईहो गुण बा की बर आ कनिया के घबराहट दुर करेला। हरदी मे एंटी आक्सीडेंट रहे के कारण माथा के दर्द आ तनाव भी कम करेला।
अब जानी मेहंदी के रसम के बियाह से पहिले के रसम में से मेहंदी के रसम बहुत ही महत्त्वपूर्ण होला। हमनी के समाज के बियाह मे रिवाज आ परम्परा के विशेष भुमिका होखेला। जवन बियाह से पहिले होखे वाला मेहंदी के रसम मे भी देखे के मिलेला। मेहंदी हमनी के समाज के बियाह के एगो अभिन्न अङ्ग हवे। ओकरे बिना बियाह के कल्पना भी करल संभव नईखे। काहे की कवनो कनिया भा औरत के करेवाला सोह्र श्रृङ्गार मे से मेहंदी के भी आपन विशेष महत्त्व बा।
मेहंदी के बिना कनिया के श्रृङ्गार अधुरा मानल जाला। मेहंदी के रसम बियाह से पहिले होखेला। हमनी के परम्परा के मान्यता अनुसार जब एक बेर हाथ में मेहंदी लाग जाला त कनिया के घर बहरी निकलल वर्जित रहेला। मेहंदी के रसम कनिया पक्ष द्वारा आयोजित कईल जाला ई एगो निजि रसम होला,जवन घर के कुछ खास सदस्य आ पहुना लोह हीं मिलके करेला। हं कुछ लोग एकरा के खुबे धुमधाम से मनावेला ई उनकर व्यक्तिगत पसन पर निर्भर करेला।
मेहंदी के कुछ ईतिहास भी बा मेहंदी मनुष्य द्वारा रचित शारीरिक कला के पुरान रुप हवे। हिन्दी आ अरबी शब्द "मेहंदी" वास्तव में संस्कृत भाषा के "मेंधिका" से निकलल बा। मेहंदी के पौधा के संस्कृत मे मेंधिका कहल जाला। सबसे पहिले हमनी के मेहंदी के उपयोग के श्रोत कांस्री-युग से मिलल बा। मेहंदी के प्रयोग समस्त विश्व मे अलग-अलग रिति रिवाज तथा रसम में बहुत ही महत्त्वपूर्ण आ शुभ मानल जाला। हिन्दु धर्म मे मेहंदी के स्त्री के सोलह श्रृङ्गार मे से एगो प्रमुख श्रृङ्गार मानल जाला।
मेहंदी के बिना एगो औरत के सुंदरता अधुरा रहेला। पारम्पारीक रुप से मेहंदी के लेप मेहंदी के सुखल पत्ता के सिलवट पर पिस के ओहमे निमो के रस गार के आ पानी मिला के रात भर खातिर राख दियाला। सबेरे एकरा के प्लास्टिक के कोण मे भर के आसानी से हाथ मे लगावल जाला कुछ लोग मेहंदी पैर मे भी लगावेला बाकीर मेहंदी के पैर मे लगावल हिन्दु धर्म में वर्जित बा एहसे माता के अपमान होला। मेहंदी के रसम बियाह से एक दिन पहिले सबेरे मनावल जाला। बर आ कनिया के घर मे एह रसम के अलगे अलग मनावल जाला। पारम्पारिक रुप से एह रसम के खाली औरत लोग मनावेला एह स्थान पर पुरुष लोग के अनुपस्थिती रहेला।
एह रसम मे लोग ढेर चमक धमक वाला पहनावा ना पहिरेला लोग,सादा चाहे हल्का रंग के पहनावा पहिरेला लोग। रसम वाला स्थान के अनेक तरह के फुल आ सजावट से सजावल जाला। बर के हाथ मे भी मेहंदी लागेला एह रसम में सगुन के तौर पर। घर के बुजुर्ग औरत लोग एक जगह पर बईठ ढोलक बजा के गीत मंगल भी गावेला लोग। बियाह से पहिले मेहंदी बस साज सजावट आ सुंदरता बढावेला ना लगावल जाला एकर कुछ वैज्ञानिक कारण भी बा। मेहंदी के ओकर शीतल गुण आ स्वभाव खाती जानल जाला।
एहिसे जब मेहंदी कनिया के हाथ मे लगावल जाला त ई पूरा बियाह के प्रक्रिया मे कनिया के शांत कर के मन के शीतलता प्रदान करेला। हमनी के हिन्दु धर्म आ परम्परा असही ना होला एकर आपन एगो खास महत्त्व होला आ खुशी बटोरे एगो सुंदर जरिया भी होखेला।
अब बात कईल जाओ सबसे बडा महादान कन्या दान के बारेमें।
जीवन में एगो निश्चित उम्र के बाद माता पिता अपना बेटी बेटा के बियाह करावेला लोग। हिन्दु धर्म के अनुसार हर बियाह में विभिन्न तरह के रस्म रिवाज के पालन कईल जाला। अगर हमनी अपना समाज के बियाह के बात करल जाव त हमनी के बियाह में वरमाला,फेरा,सिंदुर दान,मंगलसूत्र पहिनावे के प्रथा सदियों से चलत आईल बा। एकरे साथ एगो महत्त्वपूर्ण रस्म होला कन्या दान एह रस्म के बिना हिन्दु धर्म के बियाह के पुर्ण रुप से बियाह ना मानल जाला। हिन्दु धर्म में कन्या के धनलक्ष्मी आ अन्नपुर्णा के स्वरुप मानल जाला। जब कन्या दान में एगो पिता ओकरे पति के सौंपे ले त उनकर ईहे कामना रहेला की जीवन भर वर बेटी के प्रेम आ सम्मान देस।
एह रस्म के द्वारा ई दर्शावल जाला जे एगो पिता अपना पुत्री से संबंधित हर कर्तव्य आ जिम्मेवारी वर के हाथ में सौपेले। पौराणिक मान्यता के अनुसार वर के बिष्णु आ वधु के लक्ष्मी के स्वरुप मानल जाला। जब कन्या दान होला तब वर बिष्णु के स्वरुप में कन्या के पिता के हर बात स्वीकार करेलें आ ई आश्वासन देवेलें की जीवन भर उनका बेटी के रक्षा आ सम्मान करिहें। कन्या दान एगो बहुत बड दान हवे एकरा के निभावल कवनो आसान बात ना होला। अईसन कहल जाला जे कन्या दान कवनो सौभाग्य से कम नईखे। जवन माता पिता के कन्या दान करेके मौका मिलेला उनका स्वर्ग जाए के सारा मार्ग खुल जाला।
एगो माता पिता ला अपना करेजा के अंश अपना बेटी के दान करल बडा हीं कष्टदायक होला। हिन्दु धर्म में बियाह के एगो संस्कार मानल गईल बा। एह संस्कार में विभिन्न रस्म के पूरा भईला के बाद ही बियाह के सम्पन्न मानल जाला आ विवाहित जोडा के समाजिक मान्यता मिलेला। बियाह संस्कार में सबसे महत्त्वपूर्ण संस्कार कन्या दान के मानल जाला अर्थात बेटी के दान। जब बेटी के माता पिता कन्या दान करेंले तब कन्या से जुडल हर जिम्मेदारी लडका यानी की वर के निभावे के परेला। कन्या दान के बाद बेटी के आपन घर नईहर पराया होजाला आ ससुराल आपन घर के रुप लेवेला।
पौराणिक कथा के मानल जाए त दक्ष प्रजापति अपना बेटियन के बियाह के बाद कन्या दान कईले रहलें। २७ नक्षत्र के प्रजापति के पुत्री कहल गईल बा जिनकर बियाह चंद्रमा से भईल रहे। उहे सबसे पहिले अपना बेटियन के चंद्रमा के सौंपले रहलें ताकी सृष्टि के संचालन होखे आ संस्कृति के विकास बढे। कन्या दान के विधि के बात कईल जाव त हमरा ज्ञान अनुसार अपना पिता के हंथेली के उपर कन्या आपन हाथ राखेली आ अपना ससुर के हंथेली के निचे वर आपन हाथ धरेले फेर हांथ पर जल डालल जाला जवन जल कन्या के हंथेली होते हुए वर के हंथेली तक चहुंपेला।
अद्येति.........नामाहं.........नाम्नीम् इमां कन्यां/भगिनीं सुस्नातां यथाशक्ति अलंकृतां, गन्धादि - अचिर्तां, वस्रयुगच्छन्नां, प्रजापति दैवत्यां, शतगुणीकृत, ज्योतिष्टोम-अतिरात्र-शतफल-प्राप्तिकामोऽहं......... नाम्ने, विष्णुरूपिणे वराय, भरण-पोषण-आच्छादन-पालनादीनां, स्वकीय उत्