होली (फगुवा ) के त्योहार हिन्दू समुदाय बिशेष करके हमनी के मधेस प्रदेश में धूमधाम से मनावल जाला।
रंग-बिरंगी होली खेले से एक दिन पहिले होलिका दहन अर्थात समद जरावल जाला।
होलिका दहन बुराई पर अच्छाई के जीत के रूप में मनावल जाला। होलिका दहन के दिन होलिका के पूजा करे के परंपरा बा।
धार्मिक मान्यता के मुताबिक एह दिन विष्णुभक्त प्रहलाद के जरावे वाली होलिका खुद आग में जर गईली। जवना के कारण एह दिन होलिका दहन के आयोजन होला। आईं जानी होलिका दहन के पूरा कहानी...
होलिका दहन के खातिर शुभ समय कब बा ?
हिन्दू कैलेंडर के मुताबिक अबकी बेर होलिका दहन नेपाली समय से आजु एतवार के रात पौने ११ बजे के बाद होई। फगुवा सोमार के भियान बा। भियान क़े चंद्र ग्रहण के प्रभाव नेपाल मे नइखे। ओहिसे बढ़िया से रउवा लोग होली मनाई आ होली पर रउआ सभे के हार्दिक बधाई आ शुभकामना बा।
अब आई जानल जाओ होलिका दहन के किंवदंती कथा
राजा हिरण्यकश्यप बहुत घमंडी रहले अवुरी उ अपना के भगवान माने लगले। एकरा चलते उ शहर के हर आदमी से जिद कईले कि उ लोग सिर्फ उनकर पूजा करे अवुरी कवनो देवता के ना। सब लोग उनका डर से उनकर पूजा करे लागल।
लेकिन हिरण्यकश्यप के बेटा प्रह्लाद भगवान विष्णु के बड़ भक्त रहले। पिता से बहुत समझवला के बाद भी प्रह्लाद उनकर बात ना सुनले अवरी विष्णु के भक्त बनल रहलन । एकरा बाद उनका के भी कइयन तरह से यातना दिहल गईल।
बेटा प्रह्लाद के हाथ-गोड़ से कुचवा देवेके कोशिश , सांप से भरल कोठरी में बंद क के जंजीर से बांध के पानी में डूबा देले अवरी बहुत अत्याचार कईले।
बाकिर प्रह्लाद के हर बेर बचाव हो गइल आ ऊ अपना भक्ति में डूबल रहले।
खिस मे हिरण्यकश्यप एकदिन अपना बेटा के हत्या करे के फैसला कईले। अउर हिरण्यकश्यप अपना बहिन होलिका के ए फैसला के जानकारी देले। बता दीं कि ब्रह्मा जी होलिका के अइसन ओढ़नी देले रहले कि ओकरा के पहिरला से आगी से भी जरल ना जा सके।
योजना के मुताबिक होलिका के अपना भतीजा प्रहलाद के संगे दुशाला (साल ) के संगे हवन कुंड में बईठे के रहे। अइसनका में होलिका दबाव में भाई के बात मान लिहली।
एकरा बाद फाल्गुन महीना के पूर्णिमा तिथि के होलिका प्रहलाद के साथे हवन कुंड में बइठली । बाकिर भगवान विष्णु के कृपा से अचानक अतना तेज हवा बहे लागल कि शाल उड़ के प्रह्लाद के ढंक लिहलस आ होलिका ओही आग में जरि के राख हो गइल।
एह कहानी के याद करत हर साल होलिका दहन के परब मनावल जाला।