मधेश प्रदेश के विभिन्न जिला में चैती छठ के रौनक शुरू होचुकल बा । सूरुज देवता के पूजा आ छठी माई के उपासना करके मनावल जाए वाला छठ पूजा के काम आजु से विधिवत शुरू होचुकल बा ।
आजु शुक के दिन नहाय खाए के विधि करके सुरु भईल चैती छठ पूजा में भीयान शनिचर के रसियाव रोटि होइ । ओहितरे पर्सो एतवार के डूबत सूरुज देवता अर्घ दियाइ । सोमार के भोरे उगत सूरुज के अर्घ देहके एह वरिष के चैती छठ समापन होजाइ ।
चैत्र महीना के शुक्ल चतुर्थी तिथि से छठ पूजा शुरू होजाला । चार दिन तक कड़ा नियम आ भक्ति से मनावल जाएवाला छठ पूजा के आज पहिला दिन के ‘नहाय खाए के दिन’ कहल जाला । आजु के दिन भोर में छठैतीन लोग स्नान करके शुद्ध सात्विक भोजन करेली ।
पबनी सहे वाली औरतन खातिर ई दिन बहुत खास होला । तन–मन के शुद्धि आजु से शुरू होजाला । नहाए खाए के दिन बनावल भोजन में शुद्धता के खास महत्व बा ।
आजु के दिन लौकी के तरकारी विशेष बनावल जाला । एह दिन अगहनी धान से पकावल भात के साथे लौकी आ चना के दाल अनीवार्य खाइल जाला ।
हिन्दू धर्म में लौकी के बहुत पवित्र तरकारी मानल जाला । एकर प्रयोग नवरात्री लगायत अउर व्रत के समय भी होला ।
लौकी खईला से शरीर के अगिला दिन उपवास करे के ताकत मिली ओहिसे भी एकर सेवन करेके वीरगंज बहुअरी के छठैतिन रम्भा देवी बतावेली । एकरा साथे एहदिन चना के दाल हि बनावल जाला काहेकी अन्य दाल के तुलना में चना के शुद्ध मानल जाला ।
छठ व्रत में पवित्रता के उल्लंघन कूठेव मानल जाला । एह दिन घर में बनावल खाना में लहसुन आ प्याज के प्रयोग वर्जित बा । उपवास करेवालन के पूरा चार दिन लहसुन आ प्याज से दूर रहे के पड़ेला ।
छठ पूजा साल में दू बेर होला । पहिला छठ पूजा कार्तिक महीना में होला आ दूसरका छठ पूजा चैत्र महीना में होला । एकरा के परंपरागत रूप से शारदिया आ वासंतिक छठ कहल जाला ।