कुछ समय से स्वास्थ ठीक नईखे मन बडा बेच्चैन रहल ह का करीं एकेडेमीक पढाई पढ पढ के मन अउंषा गईल रहल ह। तबे हमार नजर हमरा टेबुल पर रखल अनेक किताबन में से एगो किताब पर जा अटकल ह "बिदागिरी"एह किताब के हम कुछ दिन पहिले हीं पढ चुकल रहनिह लेकीन आज हमरा एह किताब के महसुस करे के मन होत रल।
हमार कुछ प्रिय लेखक लोग में से एगो प्रिय लेखक बानी स्व.उमाशंकर द्विवेदी 'दधिचि' जी आज उहाँ के हमनी के बिच में नइखी बाकिर बितल दिन में अपना प्रिय लेखक के साथ हठ आ वाद विवाद करे के अवसर के हमेसा याद करत रहेनी ।
बिदागिरी खण्ड काव्य 'दधिचि' जी के पहिला कृती हवे। एह कृती में साहित्य प्रती के उहाँ के नेह साफ साफ देखल जा सकेला।
अईसे त उहाँ के ढेर कृती बाडी सन माकीर बिदागिरीू के एगो अउर खासियत बा जे "बिदागिरी" के बाकी सब कृतीयन से खास बना देवेला। दधिचीूजी के पत्नी के सबसे प्रिय कृती बिदागिरी हीं हवे।
बिदागरी के नाव सुनके एह कृती के पढेला मन ब डा दिन से आतुर रहे बाकीर हमके किताब ना भेंटाईल। एक दिन बडा भाग्य से हमर यात्रा पर्सा जिल्ला स्थित बहुवरी गांव में रहल 'दधिची' जी के घर के भईल।
जब हम उहाँ पहुंचनी त उ घर के वातावरण ठेट गांव के घर लेखा रहे अईसन लागल जईसे कईयन वरिष से छुटल हमार गांव हमरा के करेजा से लगा लेले होखे आ ओह घर के सब से प्रिय पात्र 'दधिची' जी के पत्नी जिनका नेह से हम निहाल भईनी। कुछ क्षण ला त हम अपना नानी आ दादी के उनका रुप में देखे लगनी अईसन लागल जे अब ईहंवे जिनगी के कुल आनंद बा। ईहां से अब कहिँ जाए के आवश्यकता नईखे।
बात बात में हम अपना मन के "बिदागिरी" पढे के लालसा दादी मां के समक्ष प्रकट क दिहनी। फिर दादी मां कुछ सोचली आ कहली जे एगो प्रती त हमरा लगे बा लेकीन हम तहरा के उ एक्के शर्त पर देब जे तूँ ओकरा के पढ के आ पूरा सुरक्षित रुप से फेरु हमरा के लौटा जईबु। हम खुशी खुशी दादी मां के एह शर्त के स्वीकार कईनी आ पुर्ण जिम्मेवारी से ओह किताब के सुरक्षित रुप से घरे ले अईनी।
भोजपुरी क़े धरोहर स्व. उमा शंकर द्विवेदी जि के लिखल खण्डकाव्य "बिदागिरी" के पहिला पन्ना पलटावते हमर मन भावुक होखल सुरु होगईल।
एह किताब हर उ रिश्ता के मनोस्थिती बखान कईल गईल बा जवन एगो बेटी के बिदाई के समय उनका नईहर के लोग के होला।
सब से खास बात एह कृती के हमरा ई लागल जे एहमे कुछ काल्पनिक बनावटी नईखे। सबकुछ यथार्थ वर्णन कईल गईल बा। जब हम एह किताब के पढे के सुरु कईनी तब से हीं हम एह किताब में समेटल हर पात्र के मनोस्थिती स्वयं में महसुस करे लगनी।
आपन जन्मल घर दुवार नईहर छोडल एतना आसान त ना होला पर ई विधि के विधान हवे ई चिज एह किताब में उल्लेख कईल गईल बा आ एगो बेटी के धिरज बान्हल गईल बा।
"बिदागिरी" में एक तरफ आपन घर दुवार छुटे के दु:ख बा त दुसरका तरफ एगो आपन नयाँ दुनिया बसावे के सुख भी बा। एगो मां बाप ला अपना बेटी के दुसर अंगना भेजे में जेतना करेजा कचोटेला ओतने कन्यादान कर के पुण्य के प्राप्ती भी बा।
एह किताब के जब अन्त तक पढत पढत जब हमरा जईसन अबोध आ अबुझ लईकी के आंख से लोर के गंगा बहे लगली त सोंची रउवा सभे के का हाल होई।
स्व.उमाशंकर द्विवेदी 'दधिचि' जी के पहिलका पुण्यतिथी पर इ लेख प्रकाशित कइल गइल बा ।